Friday, 1 August 2014

ओ सिद्ध शिल्पी ! (मेहर)

ओ सिद्ध शिल्पी !
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ओ सिद्ध शिल्पी !
उकेरी है तुम ने 
अपनी टाँकी से,
मुझ कठोर पाषाण में
कोमलतम
अनुभूतियाँ !  

बन कर 
कुशल चित्तेरे
अंकित की है तुम ने 
मेरे जीवन केनवास पर
विराट की 
दिव्य विभूतियाँ ! 

तेरे और मेरे
मध्य घटित 
संवादों के
लेखनीबद्ध होने से
हो सकी है रचित 
कालजयी 
कुछ कृतियाँ !


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