ओ सिद्ध शिल्पी !
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ओ सिद्ध शिल्पी !
उकेरी है तुम ने
अपनी टाँकी से,
मुझ कठोर पाषाण में
कोमलतम
अनुभूतियाँ !
बन कर
कुशल चित्तेरे
अंकित की है तुम ने
मेरे जीवन केनवास पर
विराट की
दिव्य विभूतियाँ !
तेरे और मेरे
मध्य घटित
संवादों के
लेखनीबद्ध होने से
हो सकी है रचित
कालजयी
कुछ कृतियाँ !
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