Friday, 1 August 2014

नजर सागर है बस तुम को...(मेहर)

नजर सागर है बस तुम को...
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रात ढलती है जाने जां 
जरा तुम होश में आओ 
लगा कर चांदनी तकिया
जल्द तुम यूँ ना सो जाओ...

सहलाओ ना सर मेरा 
आज खामोशियाँ देखे, 
छुओ ना लरजते ये होंठ 
जिसे ये मदहोशियाँ देखे...

सह रहे हो क्यों
ये दुःख सांझे अकेले तुम, 
मीठा हो कि या कडवा 
बोल दो आज कुछ भी तुम..

सरकाओ ना चिलमन को
शबा से शर्म क्यों तुझको,
घूँट भर लो ना जी भर तुम 
नजर सागर है बस तुम को...

मिले हैं चन्द ये लम्हे 
मुझे तुम आज अपनाओ,
खिला है रूह का यह कँवल
फिजा को आज महकाओ...

जिस्म तो झील है केवल
तैर कर पार जाना है,
तुम्ही से बहुत पाया है
तुम्ही से और पाना है...

जानती हूँ मैं  शिद्दत से 
के तू वो ही दीवाना है, 
पनाहों में तेरी हर दम
मोहब्बत का खजाना है...

मेरी जागी सी नींदिया है 
ख्वाब बरसे हैं पलकों में, 
तेरे कोमल से हाथों की 
छुअन है मेरी अलकों में...

ले लो हाथ हाथों में 
सफ़र पर अब निकल आओ, 
लगा कर चांदनी तकिया
जल्द तुम यूँ ना सो जाओ...

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