अबोध...
('पर्याय ' का सेकुएल)
# # #
दिखती है
झांकती
झीने परदे की
औट से
मेरी
अतृप्त
कामनाओं की
अनियंत्रित भीड़,
जो नहीं
रहने दे रही
स्वयं को
स्वयं में,
किये जा रहा है
अतिक्रमण
आतुर मन
प्रति पल
लक्ष्मण रेखा का,
काश !
जान पाता
अबोध,
कर रही है
अनुसरण ;
अराजकता,
दबे पांव उसका...
स्वच्छता
सफ़ेद चद्दर
सफ़ेद बिस्तर की
है मंदिर मेरा,
होती है
जिसमें
पूजा
मेरे स्वयम की
द्वारा मेरे ही...
सफ़ेद चद्दर
सफ़ेद बिस्तर की
है मंदिर मेरा,
होती है
जिसमें
पूजा
मेरे स्वयम की
द्वारा मेरे ही...
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