Friday, 1 August 2014

तू क्या जाने....(मेहर)

तू क्या जाने....
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रातों आँखें जगती है 
प़र मन सपनों में खोता है,
तू क्या जाने भूलने वाले
दर्द-ऐ-दिल क्या होता है.

मदमाता सावन आने प़र 
रिमझिम बदली बरसेगी
तुझे देखने मेरी  आँखें 
ना जाने क्यों तरसेगी,
कहूँ सच, बादल आवारा
उर अंगारे बोता है,
तू क्या जाने भूलने वाले
दर्द-ऐ-दिल क्या होता है.

सोचा था जीवन भर अपने
होगी पनाह तुम्हारी बाँहों में,
नहीं सोचा ठुकराई जाकर,
भटकूंगी  मैं राहों में,
मेरे मन का पागल पंछी 
बाट तुम्हारी जोहता है,
तू क्या जाने भूलने वाले
दर्द-ऐ-दिल क्या होता है.

तेरी मेरी प्रेम तूलिका 
रंग भर देगी फूलों में,
कोमलता तेरे होने की 
बस जाएगी शूलों में,
किरणों को पाने के खातिर 
आकाश तिमिर को ढोता है,
तू क्या जाने भूलने वाले
दर्द-ऐ-दिल क्या होता है.

ना जाने मैं नहीं रहूंगी
ना जाने तुम नहीं रहोगे,
प्रेम तो है जन्मों का नाता 
कब तक मुझ से दूर रहोगे,
अब हठ छोडो कसमें तोड़ो
चिर मिलन का न्यौता है,
तू क्या जाने भूलने वाले
दर्द-ऐ-दिल क्या होता है.

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