शिक्वागुज़ारी
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कभी बरसी थी
मोहब्बत
तेरी आँखों से,
आई है इमरोज़
हवा तगाफुल की
तुम से..
ऐ हस्सास इन्सां
तू बता हम को,
बदल कर रुख
खेल आजमायिस का
क्यों खेले जाते हो
हम से..
हालते इन्तिज़ार हुई है
हालते नज़अ आज,
शामोपगाह
दरिया-ऐ-अश्क
बहे जा रहे हैं
हम से..
ना हुआ गवारा
क्योंकर
शिर्क मेरा,
तकसीर हर सजदे का
सीखा है हम ने
तुम से..
माफिज्ज़मीर हमारा
समझ पाओगे तुम
यक दिन,
उम्मीद माफौकुल बशर की
हरदम हुआ करती है
तुम से..
दम-ब-खुद हो गये थे
तुम यकायक,
इख्तिलाजे क़ल्ब
मुसिर्र हुई है
ऐ मूनिस
तुम से..
इलाज़ नहीं
रंजिश बेजा का
लुकमान के हाथ,
मेरे गमे पिन्हाँ की
दवा है फ़क़त
तुम से....
(शिक्वागुज़ारी=उलाहने देने का आयोजन, हालते नज़अ=मरते समय की दशा. शामोपगाह=अहर्निश/round the clock. शिर्क=अनेक ईश्वरों को मानना,तकसीर=पाप, माफिज्ज़मीर= मन की बात,माफौकुल बशर=असाधारण/supernatural
दम-ब-खुद=मौन, इख्तिलाजे क़ल्ब= दिल की धड़कन,मुसिर्र=जिद्दी, मूनिस=दोस्त,रंजिश बेजा=अकारण नाराज़गी, गमे पिन्हाँ=मानसिक दुःख, प्रेम की व्यथा.)
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