मानो मैं भी दीप बनूँगी...
########
बिंधा हुआ है
मेरा अंतर
सुरभि बिखरी है
अति सुन्दर
अर्पित हूँ मैं
ठुकरा दो ना
मैं चरणों की
धूल बनूँगी,
हो समर्पित
तन मन से प्रिय
मैं पूजा का
फूल बनूँगी...
ह्रदय मेरे प़र रखूं
चिंगारी
बनूँ जोत की
मैं अधिकारी
बुझा भी दोगे
तो क्या गम है
काजल बन कर
सैयां मेरे
उन नयनन के
मैं समीप बनूँगी
मानो मैं भी
दीप बनूँगी...
No comments:
Post a Comment