Saturday, 2 August 2014

ऐ कायर,कैसे वीर ? (मेहर)

ऐ कायर,कैसे वीर ?
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बींध ना सकेंगे
मेरे उर को
ये तेरे,
घिसे पिटे से
कुंद हुए से 
तीर,
छोड़ छोड़ 
तुम रिक्त करोगे
अपना वृहत 
तुणीर...

झर जायेंगे
सूखे पत्तों जैसे 
छू कर मुझ को
तेरे बाण गरीब, 
बात निशाने की तो
छोडो 
आ पाएंगे ना
करीब...

खुद बन जाओगे 
खुद के खातिर
कितने प्रश्न 
गंभीर,
लौटोगे तुम
हार मान कर
ऐ कायर,
कैसे वीर ?

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