Saturday, 2 August 2014

तरकश ! (मेहर)

तरकश !
# # #
ना बिंध 
पाये
तीव्र दौड़ते 
समय मृग को, 
अम्ल से 
शब्दों के
तरल में 
डुबो कर 
निर्मित
तीखे तीखे  
तीर मेरे,
सखी !
ना जाने कब 
हो गया था 
खाली
तरकश मेरा...

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