अधूरे रिश्ते...
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आज के अनुरोध
बन जाते
शनै शनै
अधिकार कल के,
आज के आभार
बनते
जटिल कारागार कल के...
विनय अनुनय
हो जाता
आवरण
आदेश का,
प्रपंच पगी
मनुहार होती
आचरण निर्देश का...
संशय पर
चढ़ जाता झोल
झीने से
विश्वास का
राह च्युत करने को
उद्यत
जाल होता
शब्दों के
आकाश का....
संकोच बन जाता
अचानक
रूप किसी
विस्तार का,
प्यार हो जाता
कथानक
अवांछित
अत्याचार का..
अधूरे रिश्तों के
किस्सों का
ना होता
आदि या
कोई अंत है,
पतझड़ का मौसम
सदा वहां,
होता नहीं
वसंत है...
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