Saturday, 2 August 2014

जीने की अभिलाषा....(मेहर)

जीने की अभिलाषा....

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आकर्षण है
अंतराल,
है व्याप्त उसीमें
घुलने की
आकांक्षा,
बिछौह
तुम्हारे में
ज़िंदा है
जीने की
अभिलाषा....

मेरा लक्ष्य है
नहीं घरौंदा,
बस है
गति मेरी का
प्रेरक,
अपरिमित
मेरे परिमित का
अदना सा
निर्देशक...

पिपासा ग्रसित
कंठ ना मेरे,
प्रत्युत
जल भी प्यासा,
बिछौह
तुम्हारे में
ज़िंदा है
जीने की
अभिलाषा....

तथ्य सत्य है
नेह-देह के,
मिलन की
समग्रता,
आनंद-अनूभूति
नहीं है
उसमें
यदि
हो ना कोई
उत्सुकता...

गहन तुम्हारा
ज्ञान है
प्रियतम,
अपूर्ण
किन्तु है
तेरी हर
परिभाषा,
बिछौह
तुम्हारे में
ज़िंदा है
जीने की
अभिलाषा....

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