याद आया.....
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गिर गयी थी
मंदिर में
मूरत,
धड़ था जुदा
जुदा थी सूरत,
बुझ गया था
दीया आरती का,
बचा था
हर जानिब
काला अँधियारा,
भौंचका था पुजारी,
याद आया
ओ बुततराश तू.....
गिर गया था
घड़ा
अचानक
पनहारन के
सर से,
टूट गया था
सब कुछ मानो
उसी घडी पहर से,
पानी ने गीली की
जब माटी,
याद आया था
औ कुम्हार तू...
सूरज उफक के
पार गया था,
रस्ते थे
सुनसान से सारे,
सन्नाटा बरपा
जमीं प़र
चुभे थे मोहे
चाँद सितारे,
ख्वाबों ने जब नींद जगाई
खामुशी में कोयल कुह्कायी,
याद आया
ओ नग्मानिगार तू...
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