Friday, 1 August 2014

अद्वैध्य (मेहर)

अद्वैध्य
#######
सांझ तो अब 
ढलने को आई,
क्यों ना 
नग्मा 
मैं लिख पायी ?

सहरा में वो    
मुझे मिला था 
चमन में 
रंगीं फूल खिला था, 
मैं थी वैसी 
क्या 
दिख ना पायी,
क्यों ना 
नग्मा 
मैं लिख पायी ?

लिखी थी मैंने
नज्में सारी,
गायी थी
गज़लें भी 
मनोहारी, 
इकरार इसरार 
सभी थे मेरे,
फिर भी मैं क्यूँ 
टिक ना पायी,
क्यों ना 
नग्मा 
मैं लिख पायी ?

माला हो ना सकी 
क्यों पूरी,
टूटी बिखरी 
रही अधूरी,
किसने किस से 
नज़रें फेरी
आज तलक मैं 
समझ ना पायी,
क्यों ना 
नग्मा मैं लिख पायी ?

मैं इष्ट आज 
आराधक मैं हूँ, 
माली और फुलवारी
मैं हूँ, 
द्वैत नहीं/
नहीं है 
माया,
मुझमें उसका 
नूर समाया, 
हिय अद्वैध्य ने 
धूनी रमाई, 
क्यों ना 
नग्मा 
मैं लिख पायी ?

(अद्वैध्य=जिसका विभाजन नहीं किया जा सकता)

No comments:

Post a Comment