कब समझोगी नादान.....
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दीर्घ देह ये बांस खड़ा है
ताला संवेदन पे जड़ा है,
ऐसे में क्यों गाती कोयल
मधुरिम मधुवन गान,
अरे तू अवसर को पहचान
रे भोली बात तो मेरी मान...
दी नहीं छांह किसी यात्री को
दिया ना कुछ किसी पात्री को,
श्रवण शक्ति कुंठित है इसकी
स्पर्श अनुभूति लुंठित है जिसकी
कब समझोगी नादान
करो तुम बन्द यह अपना गान..
छूकर इसको पवन व्यथित है
गात इसका रोमांच रहित है,
पुष्प कहाँ इस दुर्भागी को
रसवंचित इस निर्भागी को,
अरे है झूठी इसकी शान
यहाँ है व्यर्थ तेरा अभियान...
अमृतघट क्यों रीत रही हो
पल पल क्यों तुम बीत रही हो,
होगा दग्ध जब तप्त लोह से
परिचय होगा स्नेह मोह से,
फूंके जायेंगे इसमें जब
हाय किसी के प्रान
तभी तो होगा इससे मुखरित
विवश यंत्रणा गान..
किन्तु शायद उस बेला तक
सुनिश्चित सखी तेरा महाप्रयान
अरे तू अवसर को पहचान
रे भोली बात तो मेरी मान,
कब समझोगी नादान
करो तुम बन्द यह अपना गान..
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