Saturday, 2 August 2014

दाग...(मेहर)

दाग...
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जां मुझ से छुडायेगा कब तक,
खुदको मुझसे बचाएगा कब तक...

जिस्म बेजान, सुपुर्दे लहद है 
तू ज़नाज़े उठाएगा कब तक...

ना आवें,यह जिद्द है सनम की 
तू महफ़िल सजाएगा कब तक...

दाग मिटते नहीं, ठहर जाते,
दामन मैला धुलायेगा कब तक...

हसरतें पूरी हो, ये तो नामुमकिन,
तू दिल को बहलायेगा कब तक...

रात बीती और वो तो ना आये,
तू नज़रें बिछाएगा कब तक...

इम्तेहाँ हो गये, बे-इन्तेहा,
तू मुझे आजमाएगा कब तक...

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