स्वप्न और सत्य...
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नयनों के
भव्य प्रासाद में
सहेलियों संग
क्रीड़ा करती
चुलबुली
कोमल सी
निष्कपट
सपनों की राजकंवरी के
सम्मुख आक़र
हो गया था प्रकट
सच का सजीला
बांका राजकुंवर,
होकर सवार
नीले घोड़े पर,
हुई थी मन्त्र मुग्ध
राज कन्या
होते हुए देख
साकार स्वप्न को,
लगी थी लुटाने वह
बन कर दीवानी
अनगिनत मोती
पलकों की
मुठ्ठियों से,
सोचा था
दर्शकों ने
यह तो है
कोई आपदा
अनायास
आई है जो
टकराया है
आज
सच सपने से,
क्या जाने वे
नादान,
शुभअवसर है
यह तो
मिलन उत्सव
मनाने का,
खुले दिल से
मणि-माणक-मोती
लुटाने का,
कहा था
सत्य ने
स्वप्न को
मैं तो हूँ बस
बिम्ब ही तेरा,
कहाँ है
तुझ बिन
अस्तित्व ही मेरा...
नयनों के
भव्य प्रासाद में
सहेलियों संग
क्रीड़ा करती
चुलबुली
कोमल सी
निष्कपट
सपनों की राजकंवरी के
सम्मुख आक़र
हो गया था प्रकट
सच का सजीला
बांका राजकुंवर,
होकर सवार
नीले घोड़े पर,
हुई थी मन्त्र मुग्ध
राज कन्या
होते हुए देख
साकार स्वप्न को,
लगी थी लुटाने वह
बन कर दीवानी
अनगिनत मोती
पलकों की
मुठ्ठियों से,
सोचा था
दर्शकों ने
यह तो है
कोई आपदा
अनायास
आई है जो
टकराया है
आज
सच सपने से,
क्या जाने वे
नादान,
शुभअवसर है
यह तो
मिलन उत्सव
मनाने का,
खुले दिल से
मणि-माणक-मोती
लुटाने का,
कहा था
सत्य ने
स्वप्न को
मैं तो हूँ बस
बिम्ब ही तेरा,
कहाँ है
तुझ बिन
अस्तित्व ही मेरा...
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