भूल...
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(१)
ज्यों ही खोले
चक्षु कली ने
जन जन बोले फूल है,
चटक तोड़ डाला
डाली से,
समझा ना कोई,
भूल है..
(२)
नाना प्रकार के
दीन स्वरों में,
सविनय लेकर
खुले करों में,
सुर चरणों में किया
समर्पित,
कितना सच्चा
कितना कल्पित,
मूक शब्द
प्रतिमा के गूंजे,
भक्त तुम्हारी
भूल है..
(३)
हुई महसूस
चुभन खार की,
तीखी अनूभूति
तीव्र मार की,
विस्मृत हुए
भाव कोमल थे,
अश्रु पीड़ा के
बोल रहे थे
निष्ठुर कैसा यह शूल है,
डाला विघ्न मेरी पूजा में
यह तो इसकी
भूल है...
(४)
एक वृक्ष का
दर्द झड़ा था
पथिक का बस
पांव पड़ा था
क्षण भर को
बैठा था राही
खिंचा था
और
फैंक दिया था,
चुभेगा कंटक
और किसीको
बात यह नादाँ
भूल गया था,
पांवों तले
रुन्दती माटी
चुप थी
या
कुछ बोल रही थी,
यह नहीं है
भूल शूल की
यह राही की
भूल है....
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