Saturday, 2 August 2014

शेष सब आनीजानी हो गयी..(मेहर)

शेष सब आनीजानी हो गयी..

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निखिल निशा संग थी मैं उसके, स्वप्न कहानी हो गयी,
दर्शन हुए जब नयन खुले तो  भोर  सुहानी हो गयी...

मारे लज्जा के लाल हुई मैं, चुनरी सी धानी हो गायी,
कम्पन तन मन में था समाया, पानी पानी हो गयी...

मिलन को मन आतुर था फिर क्यूँ आनाकानी हो गयी,
भोली भली नार थी मैं सखी, फिर क्यूँ सयानी हो गयी...

सूना सूना संसार था मेरा, नभ सम छानी हो गयी,
जीवन नवनीत था बिखरा बिखरा, सशक्त मदानी हो गयी..

लड़ पड़ी मैं निष्ठुर समाज से, साक्षात् भवानी हो गयी,
प्रेम ही रहा जीवन में मेरे, शेष सब आनीजानी हो गयी..

अर्पण कर सर्वस्व अपना, शून्य सी प्रानी हो गयी,
ज्ञान के शब्द विलुप्त हुए थे, मैं अज्ञानी हो गयी....

 
प्राण प्रतिष्ठा पुनः पायी तो, बात अजानी हो गयी
प्रेम कहानी का वो राजा, मैं भी रानी हो गयी....

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