तेरा प्रकाश क्यों है ?
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तू सूरज है तो
क्यों हुआ था अस्त
उस दिन,
तेरे बाद भी मुझ प़र
तेरा प्रकाश क्यों है ?
करती रहती हूं
मैं खोज
ना जाने किस की,
वृक्ष ही ना रहा
पुष्प-सौरभ की
अपेक्षा क्यों है ?
नहीं समझ पायी
अपने ही दिल की
आदत को,
सफ़र ख़त्म हुआ
फिर भी तेरी
तलाश क्यों है ?
रखती थी
मैं वांछा
झरने से
सुशीतल जल की,,
मिल ना पाया तो
गर्माहट की
प्रत्याशा क्यों है ?
तोड़ निकला था
मज़बूत छत को
पेड़ बढ़ कर,
ऊर्जा थी
उगने की
पाप का
आरोप क्यों है ?
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