काश तुम्ही कह देते वह सब..
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सोचा दे ही डालूं उत्तर
आज
तेरे अनबूझ प्रश्नों का,
पूछ ना पाये
तुम मुझ से जो
स्वयं से डर कर ......
कहा था उसने
तू तो है
एक पुष्प सुकोमल,
देह तुम्हारी
झीनी मलमल,
पवन बासंती
चाल है तेरी,
नयन तेरे
है सुरा अंगूरी,
सुगंध भरा हर
शब्द है तेरा,
यौवन उन्मुक्त प़र
ना कोई पहरा,
सर्व सत्य
भावनाएं तुम्हारी,
तुम प़र वारी
दुनियां सारी,
तुम हो प्रिये
ऐसा निर्मल जल,
गहराई में
मोती उज्जवल,
तल में तेरे
रेत ना होती,
प्रवाह निरंतर में
तू बहती...
क्यों ना होती
मुदित मैं
सुन यह,
गांठें वचनों की
लगी बाँधने,
पकड़े
एक अदृश्य डोरी
अपनी धुन्ध की
छत के नीचे,
छुआ था माटी को
जब जल ने,
बनी थी प्रतिमा
स्पर्श वो पाकर,
आँख खुली तो
बिखर गयी थी,
कण कण में
बस नाम तुम्हारा,
काश तुम्हीं
कह देते
वो सब,
काश तुम्ही
छू लेते
यह सब...
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