मेरा अपना सपना..
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रुका नहीं मेरे नयनों में मेरा अपना सपना..
प्रातः की पैनी कटार ने घाव किया कुछ गहरा
शम्मा बुझी परवाने प़र भी कड़ा हुआ था पहरा,
हवा ले गयी थी बादल को भूल पहाड़ का तपना
रुका नहीं मेरे नयनों में मेरा अपना सपना..
आँखों के भँवरे रोते हैं स्वप्न पुष्प जो टूटा
तृप्ति है परिणति प्यास की शेष है सारा झूठा
किसने देखा मेरे तन का दीर्घ निशा में जलना
रुका नहीं मेरे नयनों में मेरा अपना सपना..
नहीं झपकें यदि पलकें मेरी खुली रहे ये आँखें
सपन बने ओ पंछी छलिये काटूं तोहरी पांखें
जीने के मिस छलता जैसे प्रति पल मुझको मरना
रुका नहीं मेरे नयनों में मेरा अपना सपना..
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