स्वप्न मेरे साकार ना होना !
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स्वप्न मेरे साकार ना होना !
आयें तू सोये नयनों में
हों ओझल पलकें खुलने में
मैं वन वन खोजूँ दीप लिये,
प्राप्य मुझे ऐ प्यार ना होना !
मैं रहूँ वैरागन पीर लिये,
नयन ह्रदय का नीर लिये
विरह लहरों प़र रहूं मचलती,
मिलन कोई मंझधार ना होना !
मीठी चुभन रहे इस उर में
पीड़ा के आभास हो सुर में
अधर रहे पिपासित हर पल,
चुम्बन सा उपहार ना होना !
मैं ने मरना सीख लिया है
नहीं जीना मैंने भीख लिया है
मुखाग्नि की चाह है तुम से
मेरे शीश श्रिंगार ना होना !
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