Friday, 1 August 2014

स्वप्न मेरे साकार ना होना ! (मेहर)

स्वप्न  मेरे  साकार ना होना !
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स्वप्न  मेरे  साकार ना होना !

आयें तू  सोये नयनों में 
हों ओझल पलकें खुलने में 

मैं वन वन खोजूँ दीप लिये,
प्राप्य मुझे ऐ प्यार  ना होना !

मैं रहूँ वैरागन पीर लिये,
नयन ह्रदय का नीर लिये

विरह लहरों प़र रहूं मचलती,
मिलन कोई मंझधार ना होना !

मीठी चुभन रहे इस उर में 
पीड़ा के आभास हो सुर में 

अधर रहे पिपासित हर पल, 
चुम्बन सा उपहार ना होना !

मैं ने मरना सीख लिया है
नहीं जीना मैंने भीख लिया है 

मुखाग्नि की चाह है तुम से 
मेरे शीश श्रिंगार ना होना !

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