मुझ से दूर है...
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वीणा की झंकार यहीं है
वादक मुझ से दूर है...
ह्रदय का सत्य है जो
नयनों का सपना है वो,
बुद्धि में अनुभूत है जो
पराया है या अपना है वो,
नृत्य के स्पंदन मुझमें
घूँघरू मुझ से दूर है..
किसकी उँगलियों ने किया सृजन
प्रश्न यह निर्मूल है
प्राण प्रतिष्ठा हुए बिना
पूजन अर्चन फ़िज़ूल है
आलोकित है मंदिर सारा
दीपक मुझ से दूर है....
पास था तो दूर था
दूर रह कर पास है,
मिलन होगा इसी जन्म में
कैसी गहरी आस है
अधरों की प्यास बुझ गयी
सागर मुझ से दूर है...
यह चाँद मेरे पास है
और चौदहवीं की रात है
उसके मौन उसके शब्द
सब तो मेरे साथ हैं
गीत की गुन्जार यहीं है
गायक मुझ से दूर है...
सतरंगी फुहारें बरस रही
भीगा मेरा तन-मन है
स्पर्श पिया ज्यूँ कर जाती
मस्त फागुनी पवन है
रंग लिपटे-चिपटे हैं मुझ से
रंगरसिया मुझ से दूर है....
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