खिलावट...
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उस शाम के
धुंधलके में,
लौटते हुए
सफ़र-ए-उफ़क़ से
अपने
घरौंदे को,
कांप उठा था
दिल
परिंदे का,
सुन कर
आवाज़ सैय्याद की
और
देखकर
मंडराना उसका,
बूढ़े बरगद के
इर्द गिर्द...
आई थी
जां में जां
और
वुजूद में खिलावट
मिली थी
जब
नज़र उसकी
घोंसले में
मुन्तजिर
अपनी
हामला
महबूबा से...
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