Friday, 1 August 2014

नहीं चाहिए...(मेहर)

नहीं चाहिए...
# # # # #
नहीं चाहिए सूरज पूरा  
दे दो तोहफा एक किरन का...

उसकी उंगली पकड़ हाथ में 
फिर राह अपनी पा जाउंगी,
मंजिल प़र जब पांव पड़ेंगे,
अपने चाँद सूरज रच पाऊँगी. 

मुझ को गुलशन नहीं चाहिए 
दे दो तोहफा एक ही गुल का..

महक फूल की फैला कर मैं
मन ही मन इतराऊँगी
इसी बहाने मैं भी प्रीतम 
चन्द लम्हे जी पाऊँगी. 

साथ मुझे अब नहीं चाहिए 
दो एहसास बस संग होने का..

तसव्वुर में अपने ओ सजना 
मैं फूलों की सेज सजाऊँगी,
तेरी बाँहों में खो कर के मैं
सफ़र आखरी जाऊँगी.

नहीं चाहिए जीवन पूरा 
दो ना मौका एक सांस का,
एक नज़र की हूँ मैं सवाली,
नहीं चाहिए महल आस का. 

No comments:

Post a Comment