Friday, 1 August 2014

अच्युत कान्हा ! (मेहर)

अच्युत कान्हा !
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रच सकते हो
महारास  
तुम्ही केवल तुम्ही 
अच्युत कान्हा मेरे,
बंधी हुई है
तुम स्थिर से 
मुझ सी च्युत
गोपियों की 
अस्थिरता,
गूंजता है 
तेरी विविध रागिनियों में
ओंकार का एकत्व,
तेरी इस 
व्यक्त लीला में
झलकती है 
अव्यक्त ऋतंभरा,
करते हो 
अभिनय तुम
जीवंत जीवन सा, 
जीते हो जीवन तुम
अभिनय सा,
क्या सत्य है तेरा
क्या है मिथ्या 
समझ ना पायी कभी 
मैं नादां,
डूबी जब जब तुझ में
पाया तेरे सत्व को 
निकट  स्वयं के 
सदा...
ओ मेरे प्रेम
ओ मेरी भक्ति
मेरे कान्हा 
मेरे कान्हा !

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