नदिया...
######
सुन !
झरना
सूखा गया था ना
और
नदी
मर गयी थी ना..
महबूब
समंदर
खाता रहा था ना
पछाड़ें
किनारों किनारों प़र...
अश्क
दीवाने के
ना जाने
कब कैसे
बन गये हैं ना
बादल...
बरसे ना आज
जम कर,
और
जी गयी ना आज
फिर से
एक नदिया
दीवानी...
No comments:
Post a Comment