Saturday, 2 August 2014

पर्याय....(मेहर)

पर्याय....
# # # 
बन गया 
पर्याय 
मेरे लिए,
डर 
विवेक का,
वितृष्णा 
अनासक्ति का, 
प्रेम 
वासना का,
नकार रही हूँ मैं
अन्तरंग 
जीवन सत्वों का
जिन्हें किया था 
अनुभूत 
संग तेरे 
दैहिक कुंठाओं से 
विमुक्त 
निरपेक्ष चेतना ने !

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