अनुभूति और प्रतीति...
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गगन का नहीं
स्वयं का रंग
नयन के
दर्पण का प्रतिबिम्ब,
रूपहीन सा स्वप्न
धारता
दृष्टि अंग-उपंग,
नहीं है अनुभूति
यह परम,
मात्र है
कोई प्रतीति का भ्रम,
अस्तित्व
अनस्तित्व के प्रश्न,
व्यर्थ के शब्द हैं
या प्रहसन.....?
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