Saturday, 2 August 2014

अनुभूति और प्रतीति...(मेहर)

अनुभूति और प्रतीति...
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गगन का नहीं
स्वयं का रंग
नयन के 
दर्पण का प्रतिबिम्ब, 
रूपहीन सा स्वप्न
धारता 
दृष्टि  अंग-उपंग,
नहीं है अनुभूति 
यह  परम,
मात्र  है
कोई प्रतीति का भ्रम, 
अस्तित्व   
अनस्तित्व के प्रश्न,
व्यर्थ के शब्द हैं 
या प्रहसन.....?

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