जीए हुए वो सपने...
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बदली शब्दों ने
करवट
मानो प्रश्न
हो गये उत्तर,
लहरों की मिटी
सलवटें,
मन होता गया है
पत्थर...
हुआ है
अथ इति का
निर्णय
देखो कितना
दूभर,
आगमन में
जो क्षण थे
बने विदाई पर
वत्सर...
नयन देख रहे हैं
जीये हुए वो सपने,
अनमिल से थे तुम
होते थे कितने अपने....
(मेरे यूनान प्रवास के दौरान लिखी एक पहले की कविता)
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