Saturday, 2 August 2014

आज की पूरी रात.....(मेहर)

आज की पूरी रात.....
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आज की 
पूरी रात
चाँद भी होगा 
और रहोगे 
तुम भी...

खूबसूरती 
ज़मीं-ओ-आसमां की
होगी 
आमने सामने,
ख्वाब 
सदियों का मेरा
तामीर होगा 
नज़रों के सामने..

साजन !
आज रात भर 
रहेंगे संग,
गुल भी
बुलबुल भी..

मोसिकी मिलेगी
हुस्न से गले 
आज की रात,
हवा के समंदर पर
लहराएगी 
परछाईयाँ ख्वाबों की 
आज की रात...

उड़ेगा रात भर 
आज
खुशबूओं के संग 
अबीर और
गुलाल भी...

तुम, चाँद और 
मेरे बालों से 
लिपटी 
बेले की कलियाँ,
मिलन से 
झूम उठेगी सजना !
हमारे 
वुजूद के गलियाँ..

छेड़ कर 
तान 
दिल की वीणा पर
रहोगे तुम सब
गुमसुम भी, 
आज की 
पूरी रात
चाँद भी होगा 
और रहोगे 
तुम भी...

 (इनमें से बहुत से metaphors पहले भी कई शायरों/गीतकारों ने प्रयोग किये हैं..बस मैंने इन्हें अपने अंदाज़ में  पेश किया है, इसलिए मौलिकता नहीं है यही समझा जाए.)

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