Friday, 1 August 2014

यकीन कर रोयी नहीं...(मेहर)

यकीन कर रोयी नहीं...
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डोरे गुलाबी 
आँखों में 
रात भर 
सोयी नहीं, 
मैं बन गयी पत्थर 
ग़मज़दा 
यकीन कर 
रोयी नहीं...

ना मिटा सकी 
बारिश गम की 
नक्स तेरा 
वजूद से,
तुम को मैं ने 
खो  दिया 
खुद से मैं 
खोयी नहीं...

जुर्म मैं ने 
ना किया 
मगर सजा 
मुझ को मिली,
क्यों काटूं 
वो फसल मैं 
जो मैंने 
बोयी नहीं...

मैं अकेली 
लड़ रही
गैरों से और
अपनों से, 
जब से 
तू चला गया
साथ देता 
कोई नहीं...

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