तुम से बढ़ कर..
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सुनो !
घृणा नहीं
प्रेम करते हैं
आज भी तुमको
स्वयं से बढ़कर,
हमने खोया
हमने पाया
हर हालत में
तुम से बढ़कर...
लौ क़तर कर
हर दीपक की
आलोकित हो
तुम इस जग में,
घाव मेरे
नक्षत्र बन गए
दीपोत्सव यहाँ
तुम से बढ़कर..
हुये हताहत
पल-छिन हम तो
झाँका तुम ने
दूर ही रहकर,
यह न समझाना
प्रियतम मेरे
मरे हैं हम कहीं
तुम से बढ़कर..
कारा की
दीवार बेडियाँ
रखे रहे तुम
निज दृष्टि में,
गली गली हम
जीये जा रहे
ऐसे बंधन
तुम से बढ़कर..
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