सुनो ! उभर आये हैं चंद सवालात
# # #
सुनो !
उभर आये है
आज
चंद सवालात
फिर से
और
मांग रहे हैं
जवाब
तुम से
मुझ से
सब से.....
सुनो !
किसका है
वुजूद अपना,
मेरे अश्कों का
या
तेरी तवस्सुम का ?
नहीं चाहिए
सहारा
किसी का
मेरे आंसुओं को,
झर जाते हैं
नयनों से
खुद ब खुद,
दिखा देते हैं
होना खुद का
ढलकते हुये
रुखसारों पर
और
चखा देते हैं
लबों को
कसैला सा
जायका
दुखों का...
तवस्सुम तेरी... ?
लिए अपने टूटे पंख
फड़फड़ाती है
होठों पर
और
ना जाने क्यों
नहीं
कर पाती कभी
साबित
वुजूद अपना....
सुनो !
सच है ना
जगत मेरा
हो पाता है
महसूस
रूप
रंग और
रस उसका,
और
देख पाते हो
आकार उसका,
और
तेरा ब्रह्म
है बस एक भ्रम
खड़ा हुआ है जो
श्रद्धा की
बैसाखियों के सहारे....
सुनो !
है ना साबित
हस्ती
मेरे सितारों की
चमकते हैं
टूटते हैं...
छू सकते हो ना
तुम
मलबा-ओ-मसकन उनके
और
तेरा आसमान ?
बसा है
महज़ आँखों में
तेरी नज़्म के
इस्तेअरा की तरह....
No comments:
Post a Comment