Friday, 1 August 2014

सज सोलहों श्रंगार सजन...(मेहर)

सज  सोलहों श्रंगार सजन...
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तुम तो हुए पराये मुझ से किस को आज रिझाऊं,
सज सोलहों श्रंगार  सजन,दर्पण देखूं इतराऊं.....

तेरे नयनों की ज्योति को निज नयनों में भर ली,
तेरी छुअन को मैंने तो तन अपने में धर ली,
सपनों को मैं याद रखूं और सच को मैं बिसराऊं,
तुम तो हुए पराये मुझ से, किस को आज रिझाऊं....

जब भी चले शीतल बयार जो, पास मैं तुम को पाऊं, 
बिजली कड़के बादल बरसे, तुझ में मैं छुप जाऊं ,
गरम तपे और स्वेद सताए, राहत तुम से ही पाऊं,
सज सोलहों श्रंगार  सजन ,दर्पण देखूं इतराऊं.....

दूर  हो मुझ से यह मैं जानूं, हो करीब तुम यह भी मानूँ,
जी लूँ  बीते लम्हों को जी भर, दिल की चलनी से छानूं,
हर पल मुझे लगता है ऐसा, तेरी इक सदा पे दौड़ी जाऊं ,
तुम तो हुए पराये मुझ से, किस को आज रिझाऊं....

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