दर्द के एहससों के बिना....
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बेनमक है ज़िंदगी
दर्द के एहससों के बिना
सृजन की बेल को
रखती है हरा
अनचाही सी पीड़ा……
लग जाती है दीमक
ऐश-ओ-आराम की
चेतना और संवेदना को
रह जाता है
बस खोखला सा इंसान…..
सूरज गर नहीं डूबता
बताओ ना
अंधेरी रात के सफे पर
कौन लिख पता
तारों की नज़्म………
नहीं छाते जो बदरा कजरारे
बताओ ना
कैसी सजती
आसमान पर
सतरंगी इंद्रधनुष…….
दर्द ने रखा है
ज़िंदगी को ज़िंदा
बताओ ना
हमदर्दी ना होती अगर
इंसान कैसे करता
महसूस
नूर खुदा का………..
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