Tuesday 5 August 2014

दो कदम.....(नायेदाजी)

दो कदम.....
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फासला चन्द क़दमों ही का था मेरे हमनशीं
दो कदम तुम ना चले दो कदम हम ना चले.

दामन-ए-वक़्त डूबता था गरम अश्कों में
मेरे दिन यूँ ही ढले- रातें मेरी यूँ ही ढले.

दिल के अरमां खामोश सी दस्तकें देते ही रहे
लबों के बंद दरवाजे हम से हरगिज़ ना खुले.

मासूम ख्वाबों की थी वोह बे-जुबां चाहत
सांसों के हिंडोले में झूले और नाजों से पले.

गरूर-ए-हुस्न मेरा वो इश्किया दीवानगी तेरी
तारीकियों में बस हसरतों के शम्में जले.

काश! सुन लेते मेरी धड़कनों की थकी सी सदा
अब आलम है यारब! हम तेरी दुनिया से चले.

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