Monday 4 August 2014

तुम से कैसा नाता है मेरा (नायेदाजी)

तुम से कैसा नाता है मेरा.......

(यह नज़्म, मेरे मनोविज्ञान पर शोध के दौरान एक केस स्टडी की थी, उस पर आधारित है.)
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तुम होते हो तो
मिलता है लुत्फ़
सताने में तुझ को
जाते हो जब दूर थोड़े
ना जाने क्यों
आता है मज़ा
गिराने नज़रों से तुझ को

जब कोई
नाम भी लेता है
तुम्हारा अनजाने
थोड़े प्यार से
थोड़े इसरार से
लग जाती है आग जाने क्यूँ
मेरे उजड़े से दयार में
मैं तेरी हूँ या  नहीं
भूल जाती हूँ मैं
तुम सिर्फ मेरे हो
बस यही ख़याल तहत
मेरे इख्तिसार में...

जन्म से खोया ही खोया है
मैंने....
ना जाने अब जो भी है पास
उसे जकड़ने की आदत सी हो गयी है
जानते हुए भी कि कुछ भी
नहीं है मेरा
खालीपन बेबसी और जलन
मेरी फितरत सी हो गयी है
सब एहसास मेरे बस है उपरी
मेरी सोचें बेहद  संकीर्ण हो गयी है

मालूम है मुझे कि
तुम्हे देने कुछ नहीं पास मेरे
मेरी हर मुस्कान रंग-ए-तौहीन हो गयी है
का से कहूँ दुखवा हमार
मुझ को बस ऐसी ही मोहब्बत की
आदत सी हो गयी है
यही मेरा बस इक पल का सुकूँ-ओ-तस्कीन है
मेरी ज़िन्दगी इक बे-मंजिल सफ़र हो गयी है
घुट रहा है दम तेरा मेरे आगोश में
थम सी गयी है लज्ज़त तेरी
शख्सियत-ए-सरफरोश में
ईसार की कई तकरीरें है पास मेरे
फ़साने वफाओं के भी बहोत लिखे हैं मैंने
लफ़्ज़ों का एक भंवर काफी है डुबोने तुझ को
मोहब्बत में मरने वालों की
कही कहानियाँ पढ़ी है मैंने
मुझ से भाग कर कहाँ जाएगा तू
मालूम है मुझे लौट के आएगा तू

मेरे अन्दर कोई कराह  रहा है
दर्द भरे नालों से आसमान गुंजार रहा है
आँखों में मेरे नींद की जगह खौफ है
बैचैनी और अकेलापन मुझे
बेमौत मार रहा है
जीना चाहती हूँ जिंदगानी मगर
बातें मेरी मौत की है
महबूबा हूँ मैं तेरी
सोचें मेरी सौत सी है .

आओ निकालो इन अंधेरों से मुझ को
रोशनी से नहला, रोशन कर दो मुझ को
मैं भटकी हुई हूँ अपने ही वीरानों में
ले चल मुझे ऐ दोस्त !
मोहब्बत के रंगीं मयखानों में
मुझ से पहली सी मोहब्बत
मेरे महबूब ना मांग
मांग ले दुआ मेरी खातिर
मस्जिद या बुत खाने में.

(यह नज़्म, मेरे मनोविज्ञान पर शोध के दौरान एक केस स्टडी की थी, उस पर आधारित है.)

(इख्तिसार=सरांश, शख्सियत=व्यक्तित्व,सरफ़रोश=आत्म बलिदान करने वाला, ईसार=स्वार्थ त्याग, दयार=घर, तौहीन=अनादर )

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