Tuesday 5 August 2014

कभी कभी : (नायेदाजी)

कभी कभी

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दिले बेताब में असर लाते हैं अरमां कभी कभी
तेरे शहर में नज़र आते हैं इन्सां कभी कभी.

तेरी मगरूरियत का हुआ आलम कुछ ऐसा 
भूले से घर आपके आते हैं मेहमां कभी कभी.

क्यों फ़िक्र करता ऐ दिल मौसम-ए-साहिल का 
कश्तियों पर होते हैं तूफां मेहरबां कभी कभी.

फ़रिश्ता खुद को समझने लगे हैं शेखजी क्यूँ 
तसबीह रखते हैं उंगलियों में हैवां कभी कभी.

तोहमत रहे मेरे सिर तंज़ीम-ए-जहाँ के नाम
मिलते रहे थे राहों में तेरे फरमान कभी कभी.

(अरमां=इच्छाएं, मगरुरियत=घमंड, आलम=अवस्था, 
साहिल=किनारा, तस्बीह=जपमाला, तोहमत=आरोप 
तंजीम=संगठन/सभा, जहाँ=दुनिया, फरमान=आदेश)

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