Tuesday 5 August 2014

शीत समाधि उर्फ मंडूक कथा : (अंकितजी)


शीत समाधि  उर्फ मंडूक कथा-एक तुकबंदी 
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(इस तुक -बंदी या गीतिका को कुछ मात्राओं के तनिक संशोधन के बाद तर्ज़- राधेश्यामी रामायण  में गाया  जा सकता है.)
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एक  रात मंडूक एक  मेरे सपने में आया था,
सादर  सविनय मुस्का कर उस ने यूँ फरमाया.था.
कोई चिड़िया पर लिखता है तो कोई लिखता कुत्ते पे,
लाशों पर व्याख्याता कोई,कोई झरे  हुए पत्ते  पे.
आप  क्यों नहीं मुझे विषय-वस्तु बनाते है,
टाइम काटने लिखते हो, क्यों ना पुन्य कमाते .है.
दादुर के गहरे शब्दों ने एक  लिखास जगा दी थी,
ग्रेट वर्क ! बढ़िया है!.की उत्कट प्यास लगा दी थी.

मेंढक  जाति उभयचर  प्राणी जल-जंगल में रहता है ,
चिकनी चमड़ी वाला यह भूरे और हरे  रंग का होता है..
शीत समाधी लेता पंक में, अंडे  बसंत में देता है,
टेडपॉल  दस-दिवस समय में अंडे  से बाहर हो लेता है.
प्रथम ग्रीष्म  के संग संग ही साँस स्वयं आ जाता है,
पूंछ छोड़  यह प्राणी माँसाहारी बड़कऊ  हो जाता है.
पूर्ण वयस्क होने में इसको बरसों ही लग जाते है.
मानव अंगों सम संरचना अंग सभी जग जाते हैं,
जीभ मंडूक-देव की लसलसी और बहुत सजीली होती है,
कीड़े  मकोड़ों  की सदगति के हेतु बहुत कंटीली होती है.

सावन भादो की ऋतु मनोरम  तन मन व्याकुल रहता है,
उसी समय दादुर-मंडल   टर -टराने  को आकुल रहता है.
गीत संगीत कवित्त  सत्संग सब चुप्पी  साधे रहते है,
मंडूक गीति के सम्मुख सब राग ही आधे रहते है.
कुवे के मेंढक सदा समंदर  को कुआं  कह देते है,
दुनियाँ ना देखी हो कभी,बदल को धुंआ  कहते है.
मादा मेंढकी जग  में  सर्वाधिक  चर्चित चरितर  है
कहावतों और मुहावरों में उसकी बात विचितर है.
चंचल चौंचले दर्शित कर कोई भी हस्ती होती है,
मेंढकी को जुखाम होने से तुलना उसकी होती है.
सामान्य सरल बाप का बेटा, जब दंभ बहुत दिखलता है,
बाप मारे मेंढकी और  बेटा उसका तीरन्दाज़ कहलाता है.

फुदक फुदक कर धरती पर दादुर दल जब चलता है,
सर्प निकल आते बांबी  से, उनका हृदय मचलता है.
मेंढक नामक  इस प्राणी का, शिक्षा से अति -नाता है,
मास्टरजी को छकाने  में मेंढक समूह काम  आता है.
मेंढक शहीद  हो कर शान से, जीव विज्ञान सिखाता है,
छोटे  बड़े चिकित्सकों को वह  जीवन राह  दिखाता  है.
पञ्च तंत्र  और इसप  कथा में मेंढक महात्मय  गाते है,
बच्चे भी उछल उछल कर , मेंढक सदृश्य  कहलाते है.
मेंढक गीत गा गा कर, प्रभु! में स्वयं भी टर्राता  हूँ,
करूँ कविताएँ लिख कर विभहो! मैं  सा-कंठ को भर्राता  हूँ.
मूढ़ बना यह कह बैठा मंडूक बहुत ही बहुमुखी है,
मंडूक -उपनिषद् पढ़ पढ़ कर जन-गन-मन  होते सुखी है.

तन बदन में सहसा मेरे गुदगुदाहट सी कुछ  होती है,
आँख खुली तो बिस्तर में, एक  नवयुवा मेंढकी होती है.
खुली खिड़की से कूद मेरी तन्हाई की साथी वह  बनी प्रिय!
शायद स्वपन में यही सुंदरी मेरी प्रार्थी बनी प्रिय !!
तुरंत डायल  कर नंबर में मसकॅट को कॉल लगता हूँ,
मेंढक प्रकरण से बचने हेतु नायेदा जी को बुलवाता हूँ.

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