एक दौर ऐसा भी
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चाहतें इस दिल में बसा करती थी कभी,
आपकी यादें हमें आया करती थी कभी.
मुक्फफल रखते थे हम अपने दर को,
दस्तकें हसीनो की सुनी जाती थी कभी.
बेख्वाब हुआ करती थी चाँदनी रातें,
शब-ए-मावस रोशन हुआ करती थी कभी.
होती थी मिरे साथ तौफ़ीक-ए-इज्तिराब ,ए सनम,
वरना तलब-ए-ख़ुदकुशी हुआ करती थी कभी.
शोर-ए-बहाराँ छुप के रोती थी खिज़ा में,
गुलशन की उदासी हमें हंसा करती थी कभी.
दीवारों के निशान कहतें हैं दास्तान दिल की,
लिपट उनके अश्कों की नदियाँ बहा करती थी कभी.
अन्दाम रूह और अना की बातें जानी है अभी,
इबादत का ज़रिया तेरी तस्वीर नज़र आती थी कभी.
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मुकफ़्फल=locked /ताला लगाया हुआ
दर=दरवाजा
दस्तक=knock (on door)/थपकी
बेख्वाब =without sleep /बिना नींद के
तौफ़ीक=divine power/ दिव्य शक्ति
इज्तिराब =restlessness/ बैचैनी
अन्दाम=Body/देह
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