मेरा आखरी सफ़र
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शजर मेरी जिंदगी का जब गिरने को हुआ,
शाखों पर बैठे परिंदे भी उड़ गये.
दर-ओ-बम भी रोने लगे हम-साए भी थे चश्म-ए-तर ,
अपनो के कई ख्वाब भी दीदा-ए-तर में डूब गये.
इत्तिला-ए-हम्द थी के हरफ़-ए-तलब उस रोज,
दुआओं में उठे वो हाथ भी लहरा कर रुक गये.
रख्ते सफ़र को उस दिन यूँ करके रवाना,
ताजिंदगी निभाने वाले कांधा देने ठहर गये.
फूँका गया था बेजान जिस्म मेरा मरघट में,
खुली आँखों के पुतले रिश्ता-ए-बेनाम को तरस गये.
अब जीने की नदामतें थी ना मरने की खलिश,
हमइनाँ को छोड़ हम अपनी रहगुजर को चल दिए.
शजर=tree दर-ओ-बम=doors and roof . हम-साये=neighbours
चश्म-ए-तर =wet eyes . दीदा-ए-तर=drown in tears
हम्द =praise of God. हरफ़-ए-तलब= begging , याचना की बात.
रख्त-ए-सफ़र=luggage and baggage for travel (यहाँ जलाने के लिए शमशन को लकड़ियाँ
भेजने से मायने है) खलिश=pierce ,चुभन, नदामतें =shames /शर्मिंदगी
हमइनाँ = सहचर/companion, रहगुजर=पथ , मार्ग.
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