बेरंग हाशिये
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हुमें बेवजह कहतें है
किताबी बातें,
और
मेरी खामोशी पर
मुस्कुरातें हैं.
किताब-ए-जिंदगी
हम ने भी पढ़ी थी
मगर,
सारे हरफ़ अब
धुंधले नज़र आते है.
हाँ, चंद लकीरों को लिए
वे बेरंग हाशिये
जाने क्यूँ
उभर उभर कर
सामने आते है.
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