खुली खिड़कियाँ
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हुसैन सागर के
किनारे
हल्के कदमो
और
भारी मन के साथ
चलते चलते
मैं ने
उस दिन जब
खुलेपन का
तोहफा माँगा था
तू ने कहा था :--
खिड़कियाँ
जब भी खुलती है
एक ठंडी हुई सिससकती सी
साँस को
एक महके महके से
गर्माहट भरे
खुले आकाश का
एहसास देती है
और लगता है
बहुत कुछ है नया
कितना अनजाना सा
बहुत कुछ जानना है
कितना कुछ पाना है
पर इस आकाश में
कभी कभी
तूफान उमड़ता है
खुली खिड़कियों को
जोरों से थपेड्ता है
और
ना सिर्फ़ यह खिड़कियाँ
खुले दरवाजे भी
डर कर
बिना सहमे
बंद हो जातें है
इसलिए
इन दरीचों और दरवाज़ों को
पहले से ही अडगी(स्टॉपर) पे
संभाल लो
ताकि वे
अपने इस नये वजूद को
कभी ना खो सके
और
वक़्त के साथ
और जियादह
खुलते रहें
संभल के
समझ के.
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