समंद समाया बूँद में
सदफ़ और गौहर : नायेदा
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रख लो ना
पोशीदा
मुझ को,
सदफ़ बन
गौहर की तरहा
कहीं खो ना जाऊं
मैं बहर में.
(सदफ़=सीप,shell. गुहार=मोटी,pearl पोशीदा=concealed ,छुपा हुआ बहर=समुद्र)
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सागर और बूँद: नायेदा जी को अंकित जी की जानिब से
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मोती बनने की चाह
रखे तुम
करती हो अपेक्षा
मेरे सीप हो जाने की.
ना सोचे इस कटु सत्या को
नष्ट करेगा
मुझको कोई
लिए लालसा
मोती को पाने की.
प्रिय!
तुम
रहो बूँद चपल सी
में रहूं लहराता सागर,
और
मिला लूँ तुझ को
निज तन मन में.
बूँद बिना अस्तित्व नही हैं
कोई भी सागर का
सम्मान नही करता
कोई रीते गागर का.
प्राण !
बना हूँ मैं
केवल तुझ से ही
मत अलगाओ ,
मुझे समा लो
खुद में ही.
कहीं खो ना जाऊं
तुम बिन मैं
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