मुस्कान और शिकन
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छान चुके हैं हम खाक इस जमाने की
ना समझ पाए वजह उनके मुस्कुराने की.
डूब जाने की कभी ना रही उनकी फ़ितरत
यही वजह है शायद गौहर चुराने की.
खुद-गर्जी से समेटे रहे सरमाया हर पल,
ला-पता है क्यूँ जब आई घड़ी चुकाने की .
उन्हे मंजूर है ढहाना ओ गिरना घर को
बैठे थे मूंदे आँख कैसी अदा बहाने की.
हक़ीक़त से दो चार होना ना मुनासिब है उनको
दिन रात पढ़ा करते हैं जिल्द झूठे फसाने की.
खिलना गवारा नहीं उनको किसी का या-रब
शिकने ललाट की कहती दास्तान दिल जलाने की
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