अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस पर
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अर्धनारीश्वर...
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पा चुका है समर्थन
विज्ञान और मनोविज्ञान का
बुनियादी सिद्धांत अर्धनारीश्वर का...
कहानी पौराणिक है
बाँट दिया था अपनी काया को
दो हिस्सों में
ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण के क्रम में,
'का' बना पुरुष 'या' बनी स्त्री
मनु और शतरूपा
और
बने दोनों मूल इस मैथुनी सृष्टि के
उत्पति हुई इस धरा पर मानव की
दोनों के मेल से...
नहीं है संपूर्ण स्वयं में
अकेला पुरुष या स्त्री अकेली,
पश्चात अपनी रचना के
भटक रहा है पुरुष
तलाश में अपने आधे हिस्से की,
आधे हिस्से की उपलब्धि का सुख
टुकड़ों टुकड़ों में
मिलता है उसे कभी मां में
कभी बहन में, कभी प्रेमिका में,
कभी जीवन संगिनी में
कभी स्त्री मित्रों में
चैन किंतु फिर भी नहीं...
नहीं मिट पाता है ताउम्र
यह एहसास अधूरेपन का,
तलाश संपूर्णता की
पूरी होगी उसके अपने अंदर ही,
महत्वपूर्ण है
धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष से भी...
अपने भीतर के स्त्रीत्व से साक्षात्कार...
पहचान लेगा पुरुष जिस दिन
अपने भीतर की स्त्री को
और उतार लेगा अपने जीवन में
उस जैसा प्रेम, ममत्व, कोमलता और करुणा
हो जाएगी पूरी तलाश उसकी स्वयं की,
निहित है इसी में
हल उसके अंतर की ऊहापोह का
और दुनिया की समस्याओं का भी,
नहीं करनी होगी उसे आकांक्षा
पृथ्वी से इतर किसी स्वर्ग की
होकर मुक्त हिंसा, क्रूरता और निर्ममता से
बन जाएगी स्वर्ग स्वयं यह दुनिया...