Wednesday, 8 June 2022

कुछ एहसास...,

 

(१)

विष के दाग पड़े हैं तन पर 

नस नस चंदन बहता है

जीवन के उलझे धागों में 

एक सरल मन रहता है...(अज्ञात)

(२)

अहसासे गुनाह का बौझ लिए 

क्या क्या मन कह देता है 

जस का तस देखूँ यदि मैं तो 

बाधा देता रहता है...(विनोद सिंघी)

(३)

नश्वर तन है नश्वर मन भी 

आत्मा अमिट अजर अमर 

चुनाव भेद भरमाते हम को 

सत्य  जिया जाए समग्र...(विनोद सिंघी)


.

यूँ ही...

 यूँ ही...

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रह गयी 

अनलिखी 

कहानियां और कविताएँ 

बहुत सी 

मात्र इस डर से 

कि ना जाने 

अच्छी होगी कि नहीं...

चाय मेरी चाय..,,

 चाय मेरी चाय...

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☕️चरस नहीं चाय है मेरा पसंदीदा वीड...जो ग़ैरक़ानूनी नहीं है और ना ही होते है जिसके कोई साइड इफ़ेक्ट.


☕️थामे हुए होता हूँ जब जब चाय का सेरेमिक वाला कप घर में या चाय खाने में, बड़ा खुशगवार होता हूँ मैं....अच्छे अच्छे वाइब्ज़ भेजता हूँ, 


☕️चाय की चुस्की ले कर, अपनी मांसपेशियों  को रिलेक्सड पाता हूँ, मद्धम हो जाती है मेरी साँसों की लय-ताल और हृदय की धड़कन हो जाती है सटीक और नियमित.


☕️चाय के साथ मुझ में और अधिक विनम्रता, समन्वय और सामंजस्य के गुण उभर आते हैं.


 ☕️चाय पीना मेरे लिए बिना कुशन मेडिटेशन करने के समान  है....बिना काव्य पुस्तक के कविताएँ पढ़ने के मानिंद  है. 


☕️वह चाय ही तो है...बस चाय जो मेरे प्राणों में उत्साह और साँसों में सरगम बढा देती है.


☕️चाय मेरी चाय 🌱

भंगी /महत्तर...

 छोटे छोटे एहसास 

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टूटे नहीं अडिग रहे, 

सब झेलना मंज़ूर था 

माना कि वक्त नाज़ुक, 

और बादशाह मगरूर था 

जाति जनेऊ और भ्रमों को 

भंग कर भंगी हो गए 

तुमने मजबूर किया, 

मगर वो महत्तर हो गए...


(मुग़लों ने युद्ध बंदी क्षत्रिय सैनिकों को २ ऑप्शन दिए थे या तो इस्लाम क़बूल करो या मैला उठाओ...वीर अडिग रहे.)

भंगी बनें....

 "भंगी" बने...

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💎चाहे ईश्वर कृतृत्व को माने, प्रकृति और स्वतः सहज सृजन की थ्योरी को स्वीकारें या कार्य और कारण के वैज्ञानिक सिद्धांत को ही आधार मान कर चलें...एक बात स्वयं सिद्ध है कि चीजें सापेक्ष होती है. 


💎नियति, भाग्य, प्रारब्ध, कर्मफल, ऋण बंधन आदि की मान्यताएँ अपनी जगह ठीक हो सकती है किंतु  यह जो हम प्रत्यक्ष देखते हैं वह मुझे इस से ज़्यादा ठीक लगता है :

कुछ भी Exact और Ultimate नहीं होता. उन्नीस-इक्कीस का फ़र्क़ होता ही है.


💎हर चीज़ के एकाधिक विकल्प होते हैं और उनमें से हम अपने लिए सोच कर या जान कर या किसी के बताने पर या सहज या कोई और तरह...कुछ चुन लेते हैं....उसे प्रेक्टिकल में अपनाते हैं.


जिन्हें अपने  भावना विवेक से बढ़ कर प्रभु या प्रकृति में विश्वास हो तो इन विकल्पों को उनके द्वारा प्रदत्त मान  सकते हैं. यह theory भी सहर्ष स्वीकार की जा सकती हैं. अंतर्विरोध पर विस्तार से ज्ञान लेना देना Intellectual Exercise है जिसका कोई प्रैक्टिकल इम्प्लिकेशन नहीं होता.


💎साइकोथेरापी, CBT, graphotheraphy, NLP, ध्यान, तरह तरह के अभ्यास, संगत, देश-काल-परिस्थिति-भाव आदि के प्रभाव से हुए बदलाव हम अपनी आँखों के सामने देखते हैं. मेरे जाने वे हमारे अपने चुनाव और उसे पालन करने के श्रम से प्राथमिक तौर पर होते हैं.उसके साथ  परमात्मा, प्रकृति और आद्यशक्ति के support को व्यावहारिक/पराभौतिक/परमनोवैज्ञानिक बात के रूप में स्वीकार किया जा सकता है. 


💎मेरे जाने हमारी बहिरंग और अंतरंग की गतिविधियाँ एक दूसरे को प्रभावित करती है. हम कितने ही परेशान हों अगर बाहर की  साफ़ सफ़ाई में लग जाएँगे तो अंदर से भी साफ़ हुए महसूस करेंगे. अगर ख़ुशनुमा उद्यान में हरियाली और फूलों के बीच हो कर या अच्छी ख़ुशबू वाला पर्फ़्यूम लगा कर या अच्छी धुन गुनगुनाकर या सुन कर खुद को आनंदित महसूस करेंगे तो हमारे अपने वाइब्ज़ भी सकारात्मक और ख़ुशनुमा होने लगेंगे.


💎एक कहावत है : जैसी नीयत वैसी बरकत. एक और : जैसा खाए अन्न वैसा रहे मन. एक और : रोते रोते जाएगा तो मरे हुए की खबर लाएगा.


💎जस का तस देखें...जो देखते हैं उसे अपने विचारों में भंग कर कर के देखें...हक़ीक़त तक पहुँच जाएँगे... आफ़त का पहाड़ छोटा पत्थर या कंकर सा समझ में आ जाएगा...स्वीकार्यता आ जाएगी...हल निकल आएगा.जो सार है उस पर तवज्जो दें जो कचरा है उसे बुहार बाहर करें. क्यों ना हम "भंगी" बनें.


समस्या अंतरंग की हो या बहिरंग की. हर यथार्थ में positivity निहित होती है. बात दृष्टि की.


💎चूँकि मेरे ऐसे नोट्स का मक़सद सोचने-समझने और मनन-गुणन करने के लिए फ़ीडबेक देना मात्र है-इतना पर्याप्त.

 अनन्या बिड़ला : अनुपम सोच और गतिविधियाँ 

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💎अनन्याश्री भारत के अरबपति घराने की एक सहज सी सोचने, समझने और करने वाली लड़की है जो गायिका, गीतकार, गिटार और संतूर वादक है. जिसने लीक से हटकर संगीत को अपने मुख्य कार्य के रूप में अपनाया. क्लबों और पब्स में गिटार बजाया. अपने गानों के अल्बम रिलीज़ किए. उनका गाना "I don't want to Love" यूनिवर्सल म्यूज़िक के साथ साइन हुआ. अन्य गानों के लिए कृपया यू ट्यूब खंगालें, सुनकर और लिरिक्स को समझकर आपको ताज़गी मिलेगी, वादा है.😊


💎बिडला ख़ानदान भारत के लिए अनजाना  नहीं है. भारत के स्वाधीनता आंदोलन से लेकर औद्योगिक विकास में इस परिवार का योगदान हमेशा चर्चित रहता है. स्व. घनश्यामदास जी बिड़ला गांधीजी के निकटम सहयोगी थे. उनके पुत्र स्व. बसंत कुमारजी और उनकी जीवन संगिनी सरला जी का अवदान उद्योग के अलावा कला, साहित्य और संस्कृति में अनुपम रहा. सरला-बसंत जी के पुत्र आदित्य बिड़ला जी ने विदेशों में उद्योग लगा कर भारत की पहली MNC का उद्भव किया वे स्वयं के अच्छे भी चित्रकार थे. उद्योग जगत के लिए आदित्य जी के सुपुत्र  कुमार मंगलम बिड़ला का नाम अनजाना नहीं जो आदित्या बिडला ग्रुप के सिरमौर है उनकी जीवन संगिनी नीरजा जी एक परोपकारी महिला है जो एक शिक्षाविद और मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में गतिशील है. अनन्या पुत्री है नीरजाजी और कुमार मंगल जी की. इस परिवार में अनन्या का उदय वाक़ई में अनन्य है.


💎इस पारिवारिक पृष्ठ भूमि का वर्णन विश्व प्रसिद्ध गायिका अनन्या बिड़ला(२७-१९९४ बोर्न) का परिचय आप से कराने के लिए ज़रूरी था क्योंकि बिड़ला परिवार की इस लाड़ली ने लीक से हटकर संगीत को अपने पेशन और प्रोफ़ेशन के रूप में अपनाया है...उद्योग बहुत बहुत बाद की प्राथमिकता.

१७ वर्ष की अल्प आयु में अनन्या ने संगीत को अपनाया.

आज यू ट्यूब और अन्य चेनल्स पर उनके गानों की धूम है. 


💎अनन्या ने स्त्रियों के स्वावलम्बन को महत्व देते हुए एक माइक्रो फ़ाइनैन्स कम्पनी भी बनाई है जो स्त्रियों को व्यवसाय के लिए छोटे छोटे लोन मुहैय्या कराती है. उनके स्टार्ट आप का नाम Swatantra Micro है.


💎आक्स्फ़र्ड में पढ़ने के दौरान चूँकि खुद उस दौर से गुज़री, अनन्या ने किशोरों और युवाओं में अवसाद और अन्य मानसिक समस्याओं में support के लिए भी एक आउट्फ़िट खोला है, जिसका नाम MPOWER है.


💎चूँकि मैं उनकी पड़दादीसा स्व. सरला बिडला जी के सम्पर्क में आया हुआ हूँ, अनन्या में मैं उनका बिम्ब देखता हूँ. बसंत बाबू बिडला की जीवन संगिनी के रूप में उनका चुनाव स्वयं गांधी जी ने किया था....बिडला परिवार के सामने आर्थिक दृष्टि से सरला जी का नैहर अति सामान्य था किंतु सरला जी की शिक्षा, दीक्षा, साहित्य कला का प्रेम, शालीनता, उदारता और सहजता की दौलत अकूत थी. अनन्या के इंटरव्यू को देखते सुनते उनकी याद ताज़ा हो रही थी.


💎धनी और प्रसिद्ध घरानों की युवा पीढ़ी में अनन्या जैसे संजीदा और संवेदनशील लोग भी हैं यह जानकारी आवश्यक है इसलिए यह छोटा सा परिचयात्मक नोट मैने यहाँ दिया है. डिटेल्ज़ के लिए फ़ुट्नोट में कुछ लिंक्स दे रहा हूँ, जो स्पेसिफ़िक जानकारी आपको मुहैय्या कराएगी, अवश्य अवलोकन करें.


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notes :

१) अनन्या का फ़्री और फ़्रेंक इंटरव्यू :

https://youtu.be/bhs6oktJZb0


२) विकिपीडिया पर अनन्या:

https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE_%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%B2%E0%A4%BE


३) अनन्या के गाने :

कृपया यू ट्यूब खंगालें 😊




आधा ख़ाली : विजया

 आधा ख़ाली 

+++++++

बिता दिए थे 

जमाने मैं ने 

उड़ेलते उड़ेलते खुद को

औरों के कपों में...


करती रही इंतज़ार 

कभी तो होगा 

मेरा भी वक्त 

सिप लेने का...


और जब आया 

मेरा भी वक्त,

तो पायी थी मैने

मेरे कप में 

बाक़ियत एक लड़की की 

जिसने कुछ ज़्यादा ही 

दे डाला था...


बाक़ियत= remainder

चाय नामा : विजया

 चाय नामा (अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस)

++++++++++++++++++++


कहा करते थे तुम

एक से होते हैं ये चाय और रिश्ते 

बदलते हैं हालात और दबाव 

जैसे जैसे 

रंग भी बदलता है इनका...


मैं ज़रा हट कर कहती 

चाय खोल देती है दिमाग़ को 

और 

प्यार खोल देता है आँखों को, 

नहीं जानती मैं दिली रिश्तों में 

हालात और दवाब का किरदार...


और तुम्हारा लालच 

बिना चीनी चाय का कप वैसा ही 

जैसे प्यार बिना ज़िंदगानी

और माँग 'चखणे' की 

क्रेकर्स, कूकीज़, निमकी और नमकीन 

जैसे इनके बिना 

चाय का चरम सुख नहीं...


मैं कहती ज़रा हट कर 

चाय का कप समरूप होता है जीवन के 

तय होता है कि कौन सा "सब्सटेंस"

इस्तेमाल हुआ है उसे बनाने में

'चखणे' का साथ 

चाय का मज़ा कम कर देता है 

एकाध काफ़ी

मगर तुम्हें तो चाहिए ही चाहिए...


तुम दार्शनिक हो कर कह देते हो 

जब भी ठंडापन और सूनापन सताए 

चाय बनाई जाय 

उड़ती भाप और चुस्कियाँ 

उसके साथ सभी रसों के वृतांत 

'सोब ठीक कोर देगा' 

बंगला एक्सेंट में हिंदी मतलब 

'सोब ठीक आछे'😊...


चाय के प्याले पर 

हमारी असहमतियाँ 

पक कर,गल कर,कमजोर होकर, सुलझकर 

गिर जाती है ना...

तभी तो एक मत हैं हम 

चाय का प्याला बन सकता है हल

हमारी हर एक मुश्किल का...

नाराज़गी : विजया

 

उदासियों के दरमियाँ 

मेरी ख़ामोशी को 

नाराज़गी समझ लिया,

दर्द छुपा कर मुस्कुराई तो 

ताज़गी समझ लिया,

मेरी तनहाइयों का साथ 

चंद निस्बतों ने दिया,

तुम ने मेरे मरासिम को 

आवारगी समझ लिया...

अक्षय पात्र...

 


अक्षय पात्र...

#######


गहरे तक 

अपने ही भीतर

लगाते हैं जब गोता 

समझ पाते हैं हम 

अपने उस पहलू को 

जो होता है विद्यमान हमेशा 

और बदलता नहीं 

यही है स्व 

जो जड़ है हमारी 

सारतत्व हमारा...


नहीं होते हैं हम 

विचार अपने 

बस जानते हैं हम 

अपने विचारों को 

नहीं होते हैं हम 

भाव और संवेग अपने 

बस करते हैं महसूस 

अपने भावों और संवेगों को 

नहीं होते हैं हम 

देह अपनी 

बस देखते हैं आइने में 

अक्स उसका 

और करते हैं उसके द्वारा 

अनुभव संसार का

अपनी इंद्रियों के ज़रिए,

हम होते हैं होशमंद प्राणी 

होता है जिन्हे होश 

अंतरंग और बहिरंग का...


सारतत्व हमारा है 

एक अक्षय पात्र

होता है जो 

भिन्न सर्वथा 

हमारे परिवर्तनशील और क्षयशील

स्वरूप से....

अबाधित सारतत्व...

 अबाधित सारतत्व...

###########


गहरे तक अपने ही भीतर

लगाता हूँ जब गोता,

समझ पाता हूँ अपने उस पहलू को 

जो होता है विद्यमान हमेशा 

और बदलता नहीं,

यही है स्व जो जड़ है मेरी 

जो है सारतत्व मेरा...


नहीं हूँ मैं विचार अपने 

बस जानता हूँ मैं अपने विचारों को,

नहीं हूँ मैं भाव और संवेग अपने 

बस करता हूँ महसूस अपने भावों और संवेगों को,

नहीं हूँ मैं  देह अपनी 

बस देखता हूँ दर्पण में बिम्ब उसका

और करता हूँ उसके द्वारा अनुभव संसार का

अपनी इंद्रियों के ज़रिए,

मैं हूँ एक सचेत प्राणी 

होश है जिसे अंतरंग और बहिरंग दोनों का...


आध्यात्म के खिलाड़ियों की 

विशुद्धता और सम्पूर्णता की बातें 

सटीक है अपने स्थान पर,

किंतु मैं तो ठहरा 

इस जीवन को जैसा है वैसा भरपूर जीने वाला,

लगता हूँ सोचने और समझने 

बहुत से रहस्य जीवन के

एक सहज सामान्य मानव की तरह...


जाना है मैं ने अपने ही दो संस्करणों को 

एक है मेरा वैयक्तिक स्व 

जी रहा है  जो दैनदिन जीवन 

शामिल है जिसमे

अर्जन, सृजन, विसर्जन 

सम्बंध, अनुबंध और प्रतिबंध

दूसरा है मेरा सार 'स्व'

जो है पारदर्शी स्फटिक सा 

विशुद्ध चेतन स्वरूप....


किया है मैने महसूस 

हमारा सारतत्व होता है  सर्वथा भिन्न 

हमारे परिवर्तनशील और क्षयशील स्वरूप से,

कभी कभी करता हूँ अनुभूत अपने सार तत्व को 

अंतरंग ऊर्जा के रूप में 

बहने देता हूँ इसे स्वयं से होते हुए 

पहुँच जाने को एक शुभ स्थिति में...


पहुँचना है मुझे 

यथावत की स्वीकार्यता तक 

बिना आलोचनामय निर्णय विभ्रम के

बहने देकर जीवन को  मुझ से होकर 

बिना अवरुद्ध किए  उसकी ऊर्जा धारा को...


नहीं है गवारा मुझे 

नकारना अपने इन दोनों संस्करणों को, 

जगत और ब्रह्म  सत्य है दोनों ही मेरे लिए,

निखिल समग्र अस्तित्व में 

कुछ भी तो नहीं संपूर्ण सत्य या संपूर्ण मिथ्या,

जी पाऊँ मैं जीवन जैसे हो अभिनय कोई 

अभिनय कर पाऊँ ऐसे  जैसे हो जीना कोई...


जाना है मैंने 

केवल मानव ही तो है 

जिसे है अग्रिम आभास और विश्वास अपनी मृत्यु का..

बना लिया है मैने 

इस अटल सत्य के सोच को मार्गदर्शक  मेरा 

जो हो कर स्वयं स्फूर्त 

कर देता है संयोजन मेरी प्राथमिकताओं का

कर देता है समायोजन मेरी दुविधाओं का....


नहीं हूँ सम्पूर्ण मैं 

हाँ पर्याप्त हूँ मैं...

डिलीट बटन

 डिलीट बटन...

########

शब्द आए,शब्द ठहरे

शब्द जिये गये...


शब्दों ने शब्दों को पैदा किया 

शब्दों ने शब्दों को पनपाया 

शब्दों ने शब्दों का खून कर दिया 

शब्दों ने शब्दों को कंधा दिया 

शब्दों ने शब्दों को जला दिया

शब्दों ने शब्दों की राख गंगा में बहा दी 

शब्द प्रेत ना बन जाए कहीं 

शब्दों ने शब्दों का गया में पिंड दान किया...


असल वाक़या कुछ यूँ हुआ :

शब्दों के पास डिलीट बटन भी था 

संग संग दबाया और सब कुछ ग़ायब...