Prelude:
1) The background of this poem is a deep rooted childhood love between a Hindu Rajput Prince and A Muslim Rajput princess. They separated, they met, they separated.
2) Some Arabian'Urdu/Hindi/Sanskrit words are used in this write which were provided by
some elder in my family, who is a great scholar.
3) Please feel the emotions of the princess and see.
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Known Unknown....(With Hindi Version)
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When I saw you again
On Time Square
You looked
Different to me
In that energy oozing crowd !
With your rudraksh beads
Safron wrap
Shining forehead
Emitting rays of divinity,
Came an instant feel
I know you since ages,
Thought of saying you
Hello !
But you were nowhere,
You the Escapist !
You ran away again from me...
Onwards that moment
You became
My quest,
I searched for you
In four metros
At ghats of Benares
On Ganges banks of Rishikesh
Among Monks of Dharamshala
At the rock of Cape Comorin
At Shanti Niketan,
I also touched Pindi,Lahore and Karachi
I have been to Dhaka, Memansingh, Chitvan and Yangoon
No trace !
Resembled so many with you
But turned just replicas
They spoke in volumes
To prove they were you
But the magnet in my heart
Always disproved,
That day I saw you in
The statesman
In a snap with firangs at Mansarovar
Again a vibrant divine man with difference,
And the report said
You were last seen there,
You vanished....just vanished
Uttered your companions...
Now I am still
No wandering
Just in wait,
Till my last breath
I would look for you to come,
Will you come to
My funeral,
Listen
I wish to become a swan of mansarovar
To pair with you
I don't wish to let my remains
Continue on this earth
I cannot wait for the day of judgment,
Don't allow the imaam to say salat-l-janazah
Allow no one to take my breathless body to al-dafin
Don't lay me in the grave,
Light my pyre
Gather the female folks of my Marudhar
To sing 'Kesariya' for me
Let my five elements
Emerge with the existence,
Listen again
Many a woman has performed 'Sati' in
Rajputana's history,
Now this would be your turn,
I crave for your 'Ichha-mrityu.'
We will be born again
As a pair of swans
To live together
In the pure water of
Mansarovar...
My soul is living with you
In this birth
Together we will be with our bodies
In the next birth,
To end the cycle of birth and death.
O The Known Unknown !
You went away that day
Like a thief
Now you come running
Like a tirathankar,
I am taking the last breath of this life,
My eyes wide open
Waiting for you
Waiting for you !
My Yogi,
We cannot live together
Let us at least die together
To be reborn,
You know this very well,
No label of religion is
Pasted on birds...
(Salah-l-janajah=funeral prayers)
Hindi Version :
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ओ जाने पहचाने अजनबी..!! (Hindi Version By Muditaji)
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देखा था पुन:
तुमको
टाइम स्क्वायर पर,
दिखे थे
कितने अलग से तुम
उस ऊर्जा से
ओत प्रोत समूह में ..
रुद्राक्ष के मोती ,
केसरिया दुशाला
और चमकते मस्तक से
दैवीय प्रकाश
मानो हो रहा था प्रसारित
और
उसी क्षण
महसूस हुआ
कि जानती हूँ मैं
युगों से
तुमको ..
बढ़ी थी
अभिनन्दन करने
तुम्हारी तरफ
किन्तु
तुम नहीं थे
कहीं भी ...
तुम पलायनवादी !!
भाग गए थे
मुझसे ..
एक बार फिर ...
उसी क्षण से
बन गए थे
तुम
तलाश मेरी ..
ढूँढा तुमको
मैंने
चारों महानगरों में,
बनारस के घाटों पर,
ऋषिकेश में गंगा के तट पर ,
कन्याकुमारी की चट्टानों पर,
शांति निकेतन में ,
और नहीं छोड़ा पिंडी ,
लाहौर
और
करांची भी
ढाका ,
मेमनसिंह ,
चितवन
और
यांगून में भी
नहीं था कोई
पदचिन्ह तुम्हारा..
मिले कई
तुम से
दिखने वाले भी
किन्तु थे वो
सिर्फ
प्रतिकृति तुम्हारी ..
ढेरों बातों से
करते हुए
कोशिश
साबित करने की
कि वो
तुम ही हैं ..
किन्तु
मेरे दिल की तरंगों ने
हमेशा नकार दिया
करने को
यकीन उन पर
फिर देखा
चित्र तुम्हारा
फिरंगो के साथ
मानसरोवर में
और
साथ ही यह खबर
कि
आखिरी बार
दिखे थे वहीं तुम ..
कहना था
साथियों का तुम्हारे
कि तुम हो गए थे
अदृश्य ..
बस..
अदृश्य ...!!!!
अब शांत हूँ मैं
स्थिर हूँ
कोई भटकाव नहीं ,
कोई तलाश नहीं
अब है सिर्फ इंतज़ार
मेरी आखिरी साँस तक
तुम्हारे आने का
तुम आओगे न
मेरे अंतिम संस्कार पर ..!
सुनो ..!!
मैं बनना चाहती हूँ
मानसरोवर का हंस
तुम्हारे साथ जोड़े के रूप
मे...
मैं नहीं चाहती
मेरे अवशेष
रहे इस धरती पर...
नहीं कर सकती हूँ
मैं इंतज़ार
रोज़ ए मेहशर का ..
मत देना इजाज़त
इमाम को
सलात-अल-जनाज़ा पढ़ने की
किसी को भी
मेर अभिशांत शरीर को
अल-दफीन
ले जाने मत देना
मुझे कब्र में नहीं दफनाना ...
जलाना मेरी चिता
और
इक्कठा करना
मेरे मरुधर की बालाओं को
जो अपने सतरंगी लहरिये
ओढ़ कर गाएंगी
'केसरिया'
मेरे लिए ..
होने देना
विलीन
मेरे
पञ्च तत्वों को
विराट
अस्तित्व में ...
और सुनो एक बात ...!!
राजपूताना इतिहास में
हुई हैं "सती "
नारियां कितनी ही ..
अब बारी है तुम्हारी ,
मुझे लालसा है
तुम्हारी
'इच्छा मृत्यु 'की ..
लेंगे हम
जन्म दुबारा
बन कर
हंसो का जोड़ा
मानसरोवर के
पवित्र जल में
रही है
रूह मेरी
साथ तुम्हारे
इस जन्म में ...
होंगे साथ हम
सशरीर ,
अगले जन्म में ,
होने को मुक्त
इस जीवन-मृत्यु के चक्र से ....
ओ जाने पहचाने अजनबी !!
भाग गए थे
उस दिन तुम
मानिंद
एक चोर की ..
आओ भागते हुए
तुम
अब एक 'तीर्थांकर '
हो कर ...
ले रही हूँ
आखिरी सांसें
इस जन्म की मैं ...
मेरी आँखें खुली है..
इंतज़ार में तुम्हारे ..
इंतज़ार में तुम्हारे ..
ओ योगी !!
हम साथ जी न सके तो क्या
कम से कम
मर सकते हैं
हम
साथ साथ
लेने को पुनर्जनम ....
तुम भी
भलीभांति
जानते हो
ओ वीतरागी !!!
पक्षियों पर
नहीं होता
चस्पां
कोई नाम
किसी धर्म का ......
(चस्पां-चिपका हुआ )