Friday, 12 February 2021

कहे बिन....: विजया

 

कहे बिन...

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बहुत सहा 

अब सहा न जाता

कहे बिन 

अब रहा न जाता...


पौर पौर में 

दर्द समाया 

मन पर भी 

पीड़ा का साया 

नदिया मैली 

अब बहा न जाता

कहे बिन 

अब रहा न जाता...


जोड़े शाश्वत 

दिलासा झूठी 

वादे सारे 

सब क़समें झूठी 

जर्जर चादर 

अब तहा न जाता

कहे बिन 

अब रहा न जाता...


आँसूँ कब के 

शुष्क हुए हैं 

लब मेरे भी 

खुश्क हुए हैं 

राख हुई 

अब दहा न जाता 

कहे बिन 

अब रहा न जाता...


देह आत्मा 

सब टूट गए हैं 

वेदन सोते 

फूट गए है 

कच्चा धागा 

अब गहा न जाता 

कहे बिन 

अब रहा न जाता...


---विजया-2021


(साहेब का शुक्रिया...मेरी हर ख़ुशी पर नाम है जिसका😊

किसी और के मनोभाव जी लेने और लिखने में साहेब की महारत का लाभ मिला है मुझे इस रचना के लिए गाइडेन्स के रूप में)

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