Sunday, 9 February 2020

रूह अफ़जा बना दिया,,,,

छोटे छोटे एहसास
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खून अपने को
'रूह-अफ़जा' बना दिया,
अजाबे ज़िंदगी को
रंगी फ़िज़ा बना दिया,
करके टुकड़े ख़ुद के
लुटा दिये उसने,
हर हक़ ख़ुद के को
इल्तिजा बना दिया,,,

(अज़ाब=पीड़ा, इल्तिजा=विनती)

ख़ुश रहो ! : विनोद और विजया

विनोद :

छोटे छोटे एहसास
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ख़ुश रहो !
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रिश्तों का क्या
कभी धूप
कभी छांव
अपना लो ख़ुद को,
ख़ुश रहो !

मिल गया जो
मुक़्क़दर है तेरा,
ना मिला है जो
उसे भूला दो ज़रा,
ख़ुश रहो !

विजया :

छोटे छोटे एहसास
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बदल जाओ...
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हुआ क्या जो
बदल गया सब कुछ
ख़ुद भी बदल जाओ,
ख़ुश रहो !

ज़िंदगी जीने का नाम
भरपूर जी लो इसको
साँसे मत गिनो,
ख़ुश रहो !